Wednesday, June 12, 2013

News Vivekanand 7-6-2013 : Bhartiya Shiksha

षिक्षा को भारतीय बनाने की आवष्यकता है

षिक्षा के मूल घटको पर हो दीर्घकालिक षिक्षा योजना

षिक्षा में योग्य परिवर्तन के लिए विद्वानेां षासन और व्यापक जनसमर्थन की आवष्यकता है। शासन को संरक्षक की भूमिका में आना होगा। भारत के पास हजारेां वर्षों का इतिहास है जो प्रगति भारत ने की थी वह बेजोड़, सर्वश्रेष्ठ है। आज वर्तमान समाज और समाज व्यवस्थाओं में बहुत बड़े प्रमाण में पाष्चात्य का अनुकरण हो रहा है इसमें मुख्य भूमिका षिक्षा की है। षिक्षा पूरी तरह से पाष्चात्य से प्रभावित है। उपरोक्त विचार विवेकानंद सार्धषती पर डाॅ. हेडगेवार स्मारक समिति द्वारा आयेाजित तीन दिवसीय व्याख्यान माला कि द्वितीय दिवस पर बोलते हुए दिलीपजी केलकर ने अपने उद्बोधन में में कही। आपने कहा कि हमारे देष में हजारेां वर्षों से स्वाभाविक समाज रहा है उसका अपना अर्थषास्त्र, समाजषास्त्र, न्यायषास्त्र रहा है। हमारे देष की षिक्षा का आधार यही रहा है। आपकी षिक्षा में अर्थषास्त्र हम एड्म स्मिथ की पढ़ते हैं तो समाजषास्त्र के एरिस्टोटल इसके दुष्परिणाम भारत सहित पूरे विष्व में दिखाई दे रहे हैं। आत्मविनाष की प्रवृत्ति में तेजी से वृद्धि हो रही है। भारत के हजारों वर्षो के उपलब्ध इतिहास से समाज में पर्यावरण और षिक्षा की कभी समस्या नहीं हुई। सारी समस्याओं का आगमन अंग्रेजी षिक्षापद्धति से हुआ है। षिक्षा को भारतीय बनाने की आवष्यकता है। इसके प्रयास स्वतंत्रता पूर्व अरविन्द, लाजपतराय, तिलक, गांधी सभी ने किए वर्तमान में भी रामकृष्ण मिषन, चिन्मय मिषन, श्री श्री रविषंकर, श्री रामदेव द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं। सबसे बड़ा प्रयास विद्याभारती का है जो 25 हजारसे अधिक विद्यालयों में षिक्षा दे रहे हैं। उसके परिणाम तो हैं परंतु अपेक्षित परिणाम नहीं मिल रहे हैं। यह सब व्यर्थ हो रहा है ऐसी नही ंहै कमी षिक्षा की मूलधारा मे ंहै। केलकरजी के मूलधारा के चार घटक बताए षिक्षा का लक्ष्य, षिक्षा पद्धति, पाठ्यक्रम और षिक्षक की गुणवत्ता उन्होंने कहा चारों घटक आज पाष्चात्य से प्रभावित है। स्वामी विवेकानंद ने षिक्षा के लक्ष्य देा सूत्र दिए हैं पहला ‘‘षिक्षा अन्र्तनिहित पूर्णत्व के विकास की प्रक्रिया है’’ और दूसरा षिक्षा राष्ट्र का निर्माण करने वाली होनी चाहिए। अध्यापन पद्धति लक्ष्य की ओर ले जाने वाली होना चाहिए जिसमें जन्मपूर्व से मृत्यु पर्यन्त तक की षिक्षा का विचार होना चाहिए। आज वे सब नष्ट हो गई हैं उन्हें पुर्नजीवित करना होगा। पाठ्यक्रम समाज और सृष्टि कि साथ एकात्मता की भावना के विकास के आधार पर ही होना चाहिए और षिक्षा के लक्ष्येां के आधार पर राष्ट्रीयता का विकास पूर्णता का विकास होना चाहिए। उन्होंने कहा षिक्षक अपने ज्ञान के प्रति निष्ठ होना चाहिए वह ज्ञान निष्ठ, राष्ट्रनिष्ठ, समाजनिष्ठ, विद्यार्थीनिष्ठ हो, वह विद्यार्थी को विकास की मर्यादा तक ले जाने वाला हो। वह कुषल निर्भय, आत्मविष्वास से युक्त समाज निर्माता है। इन सभी का निर्माण कैसे हो इसके लिए दीर्घावधि की व्यापक योजना बनाना होगी इस येाजना में संगठित प्रयासों की आवष्यकता होगी। इस दीर्घकालीन योजना के पांच चरण (तप) है जिसमें हर चरण 12 वर्ष का होगा।

1. नेमीषारण्य - इस योजना में देष भर के विद्वान उपयुक्त चार क्षेत्रों में अध्ययन और षिक्षा के श्रेष्ठ मूल तत्वों प्राचीन और वर्तमान षिक्षा पद्धति के साथ मेल बिठाकर उसे पुनः प्रस्तुत करें।

2. लोकमत परिष्कार - उपरोक्त अध्ययन और अनुसंधान से जो निष्कर्ष निकल कर आयेगा उसे समाज तक पहुंचाने की जिम्मेदारी इसमें होगी।

3. परिवार कुटुम्ब का सुदृढ़ीकरण - परिवार को संस्कारित होना बहुत आवष्यक है। जब तक संस्कारवान विद्यार्थी विद्यालय नहीं आयेेगे तब तक षिक्षक बहुत ज्यादा योगदान नहीं दे पायेगा।

4. आचार्य निर्माण और षिक्षक के द्वारा स्वयं षिक्षा केन्द्रों का निर्माण।

ये सभी कार्य 3 जुलाई 2012 से विषुद्ध भारतीयता पर आधारित पुनरूत्थान विद्यापीठ अहमदाबाद में चालू हो चुका है।

कार्यक्रम के प्रारंभ में अध्यक्षता कर रहे षिक्षाविद श्रीमान माधव परंाजपे, ने भी संबोधित किया। संचालन सागर चैकसेे ने किया।

8 जून के कार्यक्रम - श्री बजरंगलालजी गुप्त का व्याख्यान विषय ‘‘विवेकानंद के विचारों के आलोक में स्वाभिमानी भारत’’ इसे आर्थिक जगत के विद्वानेां, व्यवसाईयों के बीच रखा जायेगा।

श्रीमान संपादक महोदय भवदीय

दैनिक ....................................

की ओर सादर प्रकाषनार्थ प्रेषित। नितिन तापडि़या

प्रांत प्रचार प्रमुख

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