“विवेकानन्द और भारत” गोष्ठी : रांची

इस कार्यक्रम का शुभारंभ भारत माता एवं स्वामी विवेकानन्द जी के चित्र पर पुष्पार्पण कर दीप प्रज्ज्जवलन के साथ सम्मानित अतिथियों को श्रीफल प्रदान कर किया गया।
सैंकड़ो गणमान्य नागरिकों की उपस्थिति में मुख्य वक्ता श्री इन्द्रेश कुमार ने कहा कि .ष्स्वामी विवेकानन्द जी का प्रादुर्भाव ऐसे समय में हुआ था जब भारत अंधकारमय काल से गुजर रहा था। उन्होने रामकृष्ण परमहंस के प्रभाव से देश की मुर्छा को तोड़ी। विवेकानन्द जी लगभग पांच वर्षो तक पराधीन भारत का भ्रमण कर भारत के दुःखदर्द को जाना। महज साढ़े उन्तालिस वर्ष की अल्पायु में उन्होने भारत के आत्मस्वाभिमान को जगायाए मरणासन्न हिन्दु समाज में प्राण फुंकने का प्रयास कियाए भारत ही नही ब्लकि देष देषान्तर में हिन्दु संस्कार और संस्कृतिए ज्ञान और विज्ञान का डंका बजाया। पराधीन भारतीयों को जीने की कला और स्वाभिमान तथा साहस दिया। उन्होने कर्म की प्रेरणा देकर एकबार फिर सुसुप्त हिन्दु समाज को झकझोरने का प्रयास किया था। आज के संदर्भ में विवेकानन्द के कार्यों का उल्लेख करते हुए श्री कुमार ने कहा कि आज भारतीय समाज बीमार हैए साधन हैए सम्पन्नता हैए प्रगति . वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है। किन्तु जो मानव में होना चाहिए जैसे. न हममें नैतिक तेज हैए न हमारा मूल्य हैए दिशाहीन समाज है और भ्रष्टाचार में डूबी राजनीति है। वास्तव में आधुनिकता के इस दौर में हमने हिन्दू सामाजिक मूल्यों का दफन कर रखा है जो इस देश को संक्रमण काल में डाले हुए है। आज भारत को फिर विवेकानन्द का वह तेजए वह शौर्य और वह संकल्प ही भारत को पुर्नवैभव पर पुर्नस्थापित करवा सकता है। भारत की आजादी की लड़ाई में गांधी जी से लेकर जितने बड़े नेता हुएए जिन्होंने देश को सबकुछ मानाए उनके पिछे विवेकानन्द की प्रेरणा थी। कोई साधन नहींए कोई सुविधा नहींए किन्तु एक महान संकल्प थाए जो विवेकानन्द के तेज से दिगदिगंत तक गुंजा। विवेकानन्द ने कहा था जब तक करोड़ों भूखेए अशिक्षित रहेंगेए तब तक मैं उस प्रत्येक आदमी को विश्वासघातक समझूंगाए जो उनके खर्च पर शिक्षित हुआ हैए किन्तु उन पर ध्यान नहीं देता। ऐसे महान सांस्कृतिक राष्ट्रीयता के जनक स्वामी विवेकानन्द अपने अल्पायु में ही जो कर दिखायाए वह कोई हजारों वर्षों में भी कोई अकेले नहीं कर सकता।

इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व न्यायाधीश श्री विक्रमादित्य प्रसाद ने स्वामी विवेकानन्दजी जीवन आदर्शो पर प्रकाश डालते हुए लोगों का आह्वान किया कि देश के विकास में स्वामी विवेकानन्दजी आज भी उतने हीं प्रासंगिक हैं । धन्यवाद ज्ञापन श्री हिमांशुकुमार वर्मा ने किया।
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